Saturday, November 25, 2017

ग़ज़ल - 42

हर तिजारत में नफ़ा नहीं होता
अहल-ए-दिल अहल-ए-वफ़ा नहीं होता

जितना सादा पहली बार होता है
इश्क़ वैसा हर दफ़ा नहीं होता

बोहोत चाक हैं इसपे खूँ-ए-कलम से
इतना कोरा तो दिल का सफ़्हा नहीं होता

अच्छा तुम्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता?
चलो मैं तुमसे ख़फ़ा नहीं होता

तेरे तग़ाफ़ुल पे मोमिन ने कहा होगा
"सनम आखिर ख़ुदा नहीं होता"

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