कुछ इस तरह अपने वजूद का बटवारा होगा
ज़मीन मेरी होगी समंदर तुम्हारा होगा
मैं अपने बाम से लेता रहूँगा ख़ुशबू तुम्हारी
नज़रों की हद तक मुझे तेरा नज़ारा होगा
तू दम्भ न भर मुझसे कुशादा होने का
तेरी गहराइयों में भी वर्चस्व हमारा होगा
मैं दिन की धूप में लूँगा तेरी सबा का लुत्फ़
तुझे रातों में मेरी सर्द आहों का सहारा होगा
तुम पढ़ लेना मेरे भेजे हुए ख़त सारे
साहिल पे उंगलियों से लिखा पैगाम हमारा होगा
तुम्हारी बड़बड़ाहट सुनता रहूँगा लहरों से
कहीं इस कोलाहल में तुमने मुझे पुकारा होगा
मैं लेट जाऊँगा किनारे पर लहरों की ओर सर करके
तुमने शायद पहले भी मेरी ज़ुल्फ़ों को सँवारा होगा
तुम आना कभी मेरे घर ज्वार-भाटों की नौका पर
माहताब मैंने उस दिन अपने आँगन में उतारा होगा
तुम्हारी कलरव से बना लूँगा मैं धुन कोई
तरन्नुम पे ग़ज़ल का लुत्फ़ बड़ा प्यारा होगा
जब-जब तुम्हारे तिश्ना-लब मुझको कभी पुकारेंगे
मैंने ख़ुद को समंदर में बिना कश्ती उतारा होगा
मुंतज़िर क़यामत का हूँ जब एक हो जाएँगे हम
तुझमे समा जाऊँगा बस जान का ख़सारा होगा
ज़मीन मेरी होगी समंदर तुम्हारा होगा
मैं अपने बाम से लेता रहूँगा ख़ुशबू तुम्हारी
नज़रों की हद तक मुझे तेरा नज़ारा होगा
तू दम्भ न भर मुझसे कुशादा होने का
तेरी गहराइयों में भी वर्चस्व हमारा होगा
मैं दिन की धूप में लूँगा तेरी सबा का लुत्फ़
तुझे रातों में मेरी सर्द आहों का सहारा होगा
तुम पढ़ लेना मेरे भेजे हुए ख़त सारे
साहिल पे उंगलियों से लिखा पैगाम हमारा होगा
तुम्हारी बड़बड़ाहट सुनता रहूँगा लहरों से
कहीं इस कोलाहल में तुमने मुझे पुकारा होगा
मैं लेट जाऊँगा किनारे पर लहरों की ओर सर करके
तुमने शायद पहले भी मेरी ज़ुल्फ़ों को सँवारा होगा
तुम आना कभी मेरे घर ज्वार-भाटों की नौका पर
माहताब मैंने उस दिन अपने आँगन में उतारा होगा
तुम्हारी कलरव से बना लूँगा मैं धुन कोई
तरन्नुम पे ग़ज़ल का लुत्फ़ बड़ा प्यारा होगा
जब-जब तुम्हारे तिश्ना-लब मुझको कभी पुकारेंगे
मैंने ख़ुद को समंदर में बिना कश्ती उतारा होगा
मुंतज़िर क़यामत का हूँ जब एक हो जाएँगे हम
तुझमे समा जाऊँगा बस जान का ख़सारा होगा
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