Friday, November 3, 2017

अकेले शेर - 7


ज़िन्दगी कुछ नहीं जुज़ दरिया-ए-पानी है
मौज है उठती है चली जानी है

हस्ती जिस्म है, यादें रूह है
जिस्म गुज़र जाते हैं रूह लाफ़ानी है

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