Wednesday, November 8, 2017

ग़ज़ल - 37

सारी ज़िन्दगी किसी के नाम करके
कोई जा रहा है ख़ुद को ग़ुलाम करके

बे-अदब सा आया था दुनिया में
जा रहा है सबको सलाम करके

वो उसकी कहानी कह रहा है
अपने ज़ख्मों को सर-ए-आम करके

तेरे ख़्याल क्यूँ कहीं नहीं जाते
मैं तो घर आता हूँ अपना काम करके

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