Tuesday, November 14, 2017

ग़ज़ल - 38

एक शख़्स है जो दिल की हर बात समझता है
हाँ मगर चुप रहता है जज़्बात समझता है

जो पूछता हूँ उससे क्या हाल है मेरा
मुस्कुरा देता है मेरी ज़ात समझता है

खुशी-खुशी सुनता है मेरे बहके-बहके शेर
डर जाता है जब मेरे अल्फ़ाज़ समझता है

दाद देते हैं दोनो बा-कमाल ख़राबी की
मैं दिल को वो मुझको बर्बाद समझता है

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