सारी हदें पार कर गया हूँ
तेरे जाने के बाद सुधर गया हूँ
वो जो कर रहे हैं मेरे हक़ में बातें
उनकी हर बात से मुकर गया हूँ
तेरी अंजुमन में बैठा हूँ
चाँदनी में निखर गया हूँ
जुगनुओं से लड़ता रहा हूँ
तीरगी से भर गया हूँ
शब गुज़ार ली अब चलता हूँ
जितना खाली था उतना भर गया हूँ
फिर तुझपे भरोसा कर लिया
तो क्या नया कर गया हूँ
डूबते वक़्त तेरी कश्ती देखी
चलते पानी में ठहर गया हूँ
क्या वजह है अहद-ए-सफ़र में
मुझे तुम मिले हो जिधर गया हूँ
देखने वाले देखते रहें मुझको
दुनिया-ए-ज़ात से उबर गया हूँ
आखिरी ग़ज़ल लिख रहा हूँ
ग़ज़लकारी से तर गया हूँ
तेरे जाने के बाद सुधर गया हूँ
वो जो कर रहे हैं मेरे हक़ में बातें
उनकी हर बात से मुकर गया हूँ
तेरी अंजुमन में बैठा हूँ
चाँदनी में निखर गया हूँ
जुगनुओं से लड़ता रहा हूँ
तीरगी से भर गया हूँ
शब गुज़ार ली अब चलता हूँ
जितना खाली था उतना भर गया हूँ
फिर तुझपे भरोसा कर लिया
तो क्या नया कर गया हूँ
डूबते वक़्त तेरी कश्ती देखी
चलते पानी में ठहर गया हूँ
क्या वजह है अहद-ए-सफ़र में
मुझे तुम मिले हो जिधर गया हूँ
देखने वाले देखते रहें मुझको
दुनिया-ए-ज़ात से उबर गया हूँ
आखिरी ग़ज़ल लिख रहा हूँ
ग़ज़लकारी से तर गया हूँ
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