Sunday, August 30, 2009

नया सफ़र

इस रात ने किया है, आगाज़ नये सफ़र का
उन्नींद आँखें अब जगीं, अरसा गुज़रा इक उमर का

कारवाँ जो साथ था, जाने कहाँ वो खो गया
पाथेय की उमंग मे, जाने कहाँ मैं सो गया

अब क्या सुनाऊं वो दास्ताँ, जिसकी बची न कुछ राख भी
ना दर्द है, ना कोई खुशी, निरपल्लव जिसकी शाख भी

गर्दिश के सितारों का, अब मोल कुछ नही
जब रौशनी को अपनी, मंज़िल की सुध नही

पर इस नये सफ़र मे, दोहराव नही होगा
अब चाँद-सितारों से भी, अलगाव सही होगा


दिनांक:  नवंबर, 2007

4 comments:

  1. अब क्या सुनाऊं वो दास्ताँ, जिसकी बची न कुछ राख भी
    ना दर्द है, ना कोई खुशी, निरपल्लव जिसकी शाख भी

    dis is ekdum bachchan style.....too gud...

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  2. landed randomnly..real nic one must say..

    catch my blogs at http://uncensoredrajstory.blogspot.com

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  3. अब क्या सुनाऊं वो दास्ताँ, जिसकी बची न कुछ राख भी

    ना दर्द है, ना कोई खुशी, निरपल्लव जिसकी शाख भी
    well said.....nice lines. congratulations!

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