Thursday, November 2, 2017

ग़ज़ल - 35

मेरी फ़िक्र करने की तुम्हें ज़रूरत नहीं है
जुदा होकर जीने की कोई सूरत नहीं है

जो गुज़री है शब वो हम दोनो की थी
और उस शब से ज़्यादा कुछ खूबसूरत नहीं है

देख ली मैंनें तेरी वादा-निबाही
और उससे ज़्यादा कुछ बदसूरत नहीं है

मौत हर दिन क़रीब आती जाती है
इंसान है तू पत्थर की मूरत नहीं है

हिज्र ख़ुद-कुश है पर मैं नहीं हूँ
इश्क़ जावेदानी है पर तू नहीं है

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