Saturday, November 18, 2017

ग़ज़ल - 40

इमकानों के बीज बोने दो
जो हो रहा है होने दो

लब क़रीब आ रहे आने दो
नये ज़ख्म लहू में पिरोने दो

मेरा पैमाना क्यों खींचा
जाम तो खाली होने दो

जज़्बा-ए-दिल अश्कों से सींचो
हम बंजर-दिल हमें रोने दो

जिनकी रात गुज़री वो उठ जाएँ
अभी दिन हुआ है मुझे सोने दो

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