Thursday, September 28, 2017

ग़ज़ल - 28

सीपियों में बंद कोई सितारा करके
ले आओ तुम समंदर से किनारा करके

आसमाँ को रश्क़ होगा हमसे आज
पास मेरे तुम रहो शरारा करके

मुझको अपने आगोश में लौट जाने दो
ले आऊंगा ख़ुद को मैं तुम्हारा करके

बहकने की इजाज़त चाहता हूँ तुमसे
और फिर जो तुम कहो गवारा करके

कायनात सो चुकी मैं भी सो जाऊंगा
कुछ देर तुम्हारे रुख़ का नज़ारा करके

महफ़िलों में जी नहीं लगता मेरा
तुम मुझे बुला लेना इशारा करके

जाते वक्त यक़ीनन दोनो रो पड़ेंगे
आँसुओं से आँसुओं को खारा करके

फिर तुम्हारी आँख से टपकूँगा मैं
तुम्हारी गोद में इक ख़्वाब प्यारा करके

फिर किसी ज़िन्दगी में हम मिलेंगे
अपने इसी रिश्ते को बहारा करके

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