याद है तुम्हें
जब भी तुम बीमार पड़ती थी
तो मैं कितना घबरा जाता था
भाग कर दवा लाना, खाना लाना
पर जब मैं बीमार पड़ता था
तुम बिल्कुल शाँत रहती थी
कहती थी - सब ठीक हो जाएगा
और दूसरे कमरे में जाकर
नम आंखों से दुआ करती थी
के मैं जल्दी ठीक हो जाऊँ
अब तुम नहीं हो
तो क्या इतना कर सकती हो -
मेरे लिए दुआ माँग लो
में ठीक ही नहीं होता
शायद तुम ज़्यादा पसंद हो उसे
या शायद मुझे वो ज़बान नहीं आती -
खामोशी की, आँसुओं की, शिद्दत की
या शायद मेरा इलाज ही मुश्किल है
शायद उसको हाथों में भी नहीं
शायद मेरी दवा तुम हो
जब भी तुम बीमार पड़ती थी
तो मैं कितना घबरा जाता था
भाग कर दवा लाना, खाना लाना
पर जब मैं बीमार पड़ता था
तुम बिल्कुल शाँत रहती थी
कहती थी - सब ठीक हो जाएगा
और दूसरे कमरे में जाकर
नम आंखों से दुआ करती थी
के मैं जल्दी ठीक हो जाऊँ
अब तुम नहीं हो
तो क्या इतना कर सकती हो -
मेरे लिए दुआ माँग लो
में ठीक ही नहीं होता
शायद तुम ज़्यादा पसंद हो उसे
या शायद मुझे वो ज़बान नहीं आती -
खामोशी की, आँसुओं की, शिद्दत की
या शायद मेरा इलाज ही मुश्किल है
शायद उसको हाथों में भी नहीं
शायद मेरी दवा तुम हो
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