Thursday, September 21, 2017

ग़ज़ल - 26

इक बोझ वो हमसे उठाया न गया
तेरे झूठ का सर से साया न गया

इस तरह तोड़ के सब रिश्ते मैं
ऐसा गया के फिर आया न गया

सारी यादों की पोटली बाँध ली है
सरमाया तुझपे कोई ज़ाया न गया

तुझको रक़ीब की बाहों में जाते देखा
यूँ लब सिले थे के बताया न गया

तुझपर हाथ उठाना मेरी इंतेहा थी
इतना कम-ज़र्फ़ था के मर जाया न गया

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