Saturday, September 16, 2017

मुम्बई

वो शहर याद आता है

अनवरत चलती रेलों में
मौजों की थपेड़ों में
एक शहर है जो कभी सोता नहीं है
जागते सपनों को कभी खोता नहीं है

ये शहर बोहोत ही अमीर है
यहाँ भेद-भाव की न कोई लकीर है
ये सबको समाविष्ट करती है
हक़ बराबर का सबको देती है

इस शहर के बाशिंदे सब
चैन से सोते हैं
सपनों को हक़ीक़त करने में
पाँव जो थके होते हैं
मुफ़्लिसी हो या लाचारी
यहाँ ख़्वाब बड़े ही होते हैं

यहाँ ज़िन्दगी चलचित्र और नाटक संजीदा हैं
यहाँ इंसान सुलझे पर अरमान पेचीदा हैं

ये शहर नहीं एक जज़्बात है
हर रंग के यहाँ एहसासात हैं

वो एक वैसा शहर याद आता है

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