याद है तुम्हें
वो हमारे बीच ख़तों का सिलसिला
वो भी क्या दौर था
कच्चे जज़्बातों का दौर
वो एक खूबसूरत नक़्क़ाशी के काग़ज़ का चुनना
और उसपे इत्र की स्याही से हर्फ़-दर-हर्फ़ ख़्वाबों को उकेरना
हर शब्द में जैसे खुशबू लिखा हो
वो इंतज़ार ख़तों का
वो सब्र का दौर
बोहोत कुछ सिखाता है
हर ख़त के आख़िर में तुम्हारा एक शेर
और मेरे हर ख़त में उसका जवाब
बहर में लिखते-लिखते बोहोत लम्बी ग़ज़ल हो गयी
अब तुम नहीं हो
तो कभी-कभी खोल लेता हूँ उन ख़तों को
उनको हवा तो लगे
शब्द बदले-बदले से मालूम पड़ते हैं
रंग ज़र्द पड़ता दिखाई देता है ख़तों का
ठीक हमारे रिश्ते की तरह
कोई दस्तावेज़ मालूम पड़ते हैं ये, किसी पुरानी सल्तनत के
जिसमे एक राजा और एक रानी हुआ करते थे
मैं पढ़ता हूँ इनको कभी-कभी
लफ्ज़-दर-लफ्ज़ झूठ लिखा है
क्यों छोड़ गई तुम इन्हें मेरे पास
क्या मोहब्बत की वसीयत थे ये ख़त मेरे नाम
आकर ले जाओ कभी तुम
इन मुर्दा ख़तों को
वो हमारे बीच ख़तों का सिलसिला
वो भी क्या दौर था
कच्चे जज़्बातों का दौर
वो एक खूबसूरत नक़्क़ाशी के काग़ज़ का चुनना
और उसपे इत्र की स्याही से हर्फ़-दर-हर्फ़ ख़्वाबों को उकेरना
हर शब्द में जैसे खुशबू लिखा हो
वो इंतज़ार ख़तों का
वो सब्र का दौर
बोहोत कुछ सिखाता है
हर ख़त के आख़िर में तुम्हारा एक शेर
और मेरे हर ख़त में उसका जवाब
बहर में लिखते-लिखते बोहोत लम्बी ग़ज़ल हो गयी
अब तुम नहीं हो
तो कभी-कभी खोल लेता हूँ उन ख़तों को
उनको हवा तो लगे
शब्द बदले-बदले से मालूम पड़ते हैं
रंग ज़र्द पड़ता दिखाई देता है ख़तों का
ठीक हमारे रिश्ते की तरह
कोई दस्तावेज़ मालूम पड़ते हैं ये, किसी पुरानी सल्तनत के
जिसमे एक राजा और एक रानी हुआ करते थे
मैं पढ़ता हूँ इनको कभी-कभी
लफ्ज़-दर-लफ्ज़ झूठ लिखा है
क्यों छोड़ गई तुम इन्हें मेरे पास
क्या मोहब्बत की वसीयत थे ये ख़त मेरे नाम
आकर ले जाओ कभी तुम
इन मुर्दा ख़तों को
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