Saturday, October 14, 2017

ग़ज़ल - 31

क़तरा-क़तरा तिश्नगी से भर जाइये
हर तरफ़ सहरा है किधर जाइये

आपको देखकर क़ाबू में नहीं हैं
मुमकिन है आप हमसे डर जाइये

ख़ुशबू पैरहन में ओढ़कर मिलने गये
और वो कहते हैं थोड़ा सँवर जाइये

वो इठलाना, वो गुंजाना, वो उड़ जाना
कोई तितलियों से कह दो सुधर जाइये

बेवजह गिला करना उनकी आदत है
दुनिया इतनी ख़राब है तो मर जाइये

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