Wednesday, October 11, 2017

ग़ज़ल - 29

वो शराब सबमें बाँट देता है
ज़हर को ज़हर काट देता है

खुशियों की गर्द उड़ रही है क्या
आँसू भी मिट्टी पाट देता है

इतना आसाँ नहीं होता वापस जाना
रिश्ता टूट कर जुड़ता है तो गाँठ देता है

ख़ुदा भी अपने बंदों में फ़र्क़ करता है
सबको चुनता है मुझको छाँट देता है

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