Monday, October 16, 2017

ग़ज़ल - 32

चलते-चलते यूँ ही रुक जाता हूँ
रुकते-रुकते आगे बढ़ जाता हूँ

मुझसे सब बचकर निकल जाते हैं
फ़रियादी दुनिया को नज़र आता हूँ

सारा कमरा उजाड़ देता हूँ
बेतरतीबी में सुकून पाता हूँ

मेरी सदाएँ नहीं पहुँचती तुम तक
मैं अपने शेरों से तुम्हें बुलाता हूँ

"जा जा जा जा बेवफ़ा"
बेख़याली में अक्सर गुनगुनाता हूँ

एक चीज़ को एक बार ही करता हूँ
धोखा हर बार नया खाता हूँ

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