याद है तुम्हें
हम दोनों अक्सर शाम के वक़्त समंदर के तट पर मिला करते थे
और किनारे के पानी में खड़े होकर, एक दूसरे का हाथ थामे, आँखें मूंद लिया करते थे
हर लहर के साथ पाँव के नीचे की रेत खिसकती रहती
और हमें लगता कि जैसे हम किसी जहाज़ पर हिलोरे खाते शून्य की ओर बढ़ रहे हों
चाँद का गुरुत्व स्वतः ही खींच लिए जा रहा हो
तुम अक्सर डर जाया करती और आँखें खोलने की बात कहती -
"कहीं हम बोहोत अंदर तो नही आ गए? कहीं हम रेत में धस तो नहीं रहे?"
"तुम्हें मुझपर भरोसा नहीं है?"
"बिल्कुल नहीं"
पर फिर भी तुम आँखें नहीं खोलती
उस उन्माद, उस भ्रम को हम दोनों खोना नहीं चाहते थे
लहरों की लयबद्ध ध्वनि हम में एक ऐसा सामंजस्य पैदा कर देती,
जैसे किसी तानपुरे की तान से झंकृत होकर हम उपसमाधि की ओर बढ़ रहे हों
पर तुम्हे मालूम है, मैं आँखें खोला करता था, बीच बीच में
यह देखने के लिए नहीं कि हम कितने पानी में आ चुके हैं
केवल तुम्हें देखने के लिए, शफ़क़ चाँदनी में
फिर किसी रोज़ इक तेज़ झोंके की लहर आयी
और हाथ छूठ गए
रात अमावस की थी
हम किनारे से काफ़ी अंदर आ चुके थे
मैंने बोहोत ढूँढा तुम्हें
न तुम मिली न इससे वापस आने का रास्ता
मैं खोता चला गया
आकार देखो तो कभी तुम
मैं शून्य तक पहुँच चुका हूँ
बोहोत सन्नाटा है यहाँ ।
हम दोनों अक्सर शाम के वक़्त समंदर के तट पर मिला करते थे
और किनारे के पानी में खड़े होकर, एक दूसरे का हाथ थामे, आँखें मूंद लिया करते थे
हर लहर के साथ पाँव के नीचे की रेत खिसकती रहती
और हमें लगता कि जैसे हम किसी जहाज़ पर हिलोरे खाते शून्य की ओर बढ़ रहे हों
चाँद का गुरुत्व स्वतः ही खींच लिए जा रहा हो
तुम अक्सर डर जाया करती और आँखें खोलने की बात कहती -
"कहीं हम बोहोत अंदर तो नही आ गए? कहीं हम रेत में धस तो नहीं रहे?"
"तुम्हें मुझपर भरोसा नहीं है?"
"बिल्कुल नहीं"
पर फिर भी तुम आँखें नहीं खोलती
उस उन्माद, उस भ्रम को हम दोनों खोना नहीं चाहते थे
लहरों की लयबद्ध ध्वनि हम में एक ऐसा सामंजस्य पैदा कर देती,
जैसे किसी तानपुरे की तान से झंकृत होकर हम उपसमाधि की ओर बढ़ रहे हों
पर तुम्हे मालूम है, मैं आँखें खोला करता था, बीच बीच में
यह देखने के लिए नहीं कि हम कितने पानी में आ चुके हैं
केवल तुम्हें देखने के लिए, शफ़क़ चाँदनी में
फिर किसी रोज़ इक तेज़ झोंके की लहर आयी
और हाथ छूठ गए
रात अमावस की थी
हम किनारे से काफ़ी अंदर आ चुके थे
मैंने बोहोत ढूँढा तुम्हें
न तुम मिली न इससे वापस आने का रास्ता
मैं खोता चला गया
आकार देखो तो कभी तुम
मैं शून्य तक पहुँच चुका हूँ
बोहोत सन्नाटा है यहाँ ।
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