Friday, January 12, 2018

ग़ज़ल - 50

जब धड़कन के साज़ मिलेंगे
सुरमई सी आवाज़ मिलेंगे

फ़लक सरीखी ग़ज़ल बनेगी
लफ़्ज़ों को परवाज़ मिलेंगे

किसी फ़क़ीर की मस्ती देखो
जीने के अंदाज़ मिलेंगे

अहल-ए-दुनिया की मत सोचो
लोग तो बस नाराज़ मिलेंगे

अपने ज़मीर की बातें सुनना
हम तुमको आवाज़ मिलेंगे

कैसे जान पे बन आती है
इश्क़ में डूबो, राज़ मिलेंगे

मेरी ग़ज़लों में ब-ज़ाहिर
उसके ही अल्फ़ाज़ मिलेंगे

मज़लूमी आँखों में झाँको
इंक़लाबी आग़ाज़ मिलेंगे

चश्म-ए-तअ'स्सुब हटाकर देखो
लोग बोहोत मुमताज़ मिलेंगे

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