Thursday, January 18, 2018

ग़ज़ल - 51

ज़ेहनी साँचों में अटकता जा रहा हूँ
सबके दिलों में खटकता जा रहा हूँ

हर सम्त से आ रही है खुशबू
कू-ब-कू भटकता जा रहा हूँ

उछलकर जो जुगनूँ पकड़ने चला था
हवा में लटकता जा रहा हूँ

यादों की कपास चिपकती है दामन पर
मैं दामन झटकता जा रहा हूँ

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