Thursday, April 26, 2018

ग़ज़ल - 66

इक आशा उड़ने को उछल-उछल
लेकिन हैं उसके अंग विकल

पर क्या उड़ान रुक सकती है
जब मन में हो विश्वास अचल

इक पंखुड़ी के नहीं होने से
क्या खुशबू गुल की होती ओझल

दुर्गम पहाड़ियों को देखे वो
नहीं हो कर भी रहें कदम मचल

हर पथ की निगाहें उसको देखें
नहीं उसकी पेशानी पर इक बल

दुनिया उसको अपनाए नहीं तो
इस दुनिया की है स्थिति विकल

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