Wednesday, May 2, 2018

ग़ज़ल - 67

शब जो चारों तरफ़ हल्ला हुआ
दिल यादों का इक मोहल्ला हुआ

इक बूढ़ी याद मुझको खोजने आयी
इक तिफ़्ल मेरे अंदर निठल्ला हुआ

आँखों के कोरों से धनक फूटी
मेरे सीने पे बारिश क्या वल्लाह हुआ

इस तरह घुमाएं हैं वो ज़िन्दगी हमारी
जैसे उनकी उंगलियों में फसा छल्ला हुआ

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