Thursday, March 8, 2018

ग़ज़ल - 58

ख़ुद को आग़ोश-ए-सब्र में पाया
जब ख़ुद को इक क़ब्र में पाया

बड़ी आसानी से लुटा दिया हमने
ता-उम्र था जिसको जब्र में पाया

दुनिया से बिछड़ कर दुनिया में लौटो
धरा ने पानी को अब्र में पाया

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