Thursday, February 22, 2018

ग़ज़ल - 57

पर्वत ने पुर्वाई चुरा ली
सूरज ने परछाई चुरा ली

मैं तुमसे नाराज़ बोहोत हूँ
तुमने मेरी तन्हाई चुरा ली

ये आईने का तर्जुमा है या
उम्र ने मेरी रानाई चुरा ली

ज़िन्दगी तुझको बनाया हमने
तूने मेरी बनवाई चुरा ली

अहद ने उसकी सब यादों को
जितनी थी बचाई, चुरा ली

कारख़ानों ने किसी का बचपन
चूड़ियों ने बीनाई चुरा ली

नज़्मों ने मज़मून चुराये
ग़ज़लों ने रुबाई चुरा ली

शहरों ने घर तक़सीम कर दिए
बच्चों ने शनासाई चुरा ली

किताबों ने तजस्सुस चुराया
तर्बियत ने दानाई चुरा ली

कौमें सदा हम-क़दम रहीं हैं
सियासत ने हम-नवाई चुरा ली

1 comment:

  1. तर्जुमा = interpretation
    रानाई = beauty
    अहद = time
    बीनाई = eye-sight
    मज़मून = essays
    रुबाई = poetry of four lines
    तक़सीम = divide
    शनासाई = acquaintance
    तजस्सुस = curiosity
    तर्बियत = education
    दानाई = wisdom
    हम-नवाई = like-mindedness

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