ये जो आदमी मंज़िल से पहले रुक जाता है
गोया सहर से पहले दीपक बुझ जाता है
हौसले जब इरादों की शमशीर उठा लेते हैं
शिकस्त ख़ुद ज़फर के आगे झुक जाता है
संजीदगी से न लो दुनिया-ए-फ़ानी को
समय का खेला है, चुक जाता है
गोया सहर से पहले दीपक बुझ जाता है
हौसले जब इरादों की शमशीर उठा लेते हैं
शिकस्त ख़ुद ज़फर के आगे झुक जाता है
संजीदगी से न लो दुनिया-ए-फ़ानी को
समय का खेला है, चुक जाता है
No comments:
Post a Comment