Friday, February 16, 2018

ग़ज़ल - 55

मेरे अंदर की तीरगी देखो
रात बिस्तर में पड़ी देखो

सुबह आफ़ताब आने वाला है
रात निकलने को खड़ी देखो

सहर-ए-फ़ुर्क़त है फ़ुर्क़त-ए-शब
कैसे जुड़ रही कड़ी देखो

फिर उसके आने की हसरत में
बस घड़ी-घड़ी घड़ी देखो

मेरा गुरूर ही है मिल्कियत मेरी
मेरे आँसुओं की लड़ी देखो

मलबा-ए-इश्क़ से बनी इमारत तुम
बस खड़ी-खड़ी खड़ी देखो

हैरत तो ये तेरे ज़ियाँ की कहानी
मेरे हादसे से बड़ी देखो

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