मछली कहे ये पानी से
तिश्ना न बुझे ज़िंदगानी से
तुझसे मुझमें हलचल वो नहीं
जो सागर की तुग़्यानी से
तू क्यूँ थम नहीं जाती
उम्र कहे ये जवानी से
तू कैसे ख़ुश रहती है
समझ पूछे नादानी से
तूने अब तक क्या-क्या सीखा
मुश्किल पूछे आसानी से
इतना बल कैसे पड़ता है
बोसा पूछे पेशानी से
इक खिलौने की क्या क़ीमत है
तंगी पूछे मनमानी से
तू ही अखबारों में क्यूँ छपती है
सच पूछे ये कहानी से
चलो दफ़्तर की रौनक़ बढ़ाएँ
ज़िंदगी की क़ुर्बानी से
दिल-ए-फ़लक में टीस उठी है
टूटे तारे की निशानी से
वो हिज्र को उल्फ़त कहती थी
मैं मिला था इक दीवानी से
कोई आकर कह दे जाने को
मुझमें बैठी अंजानी से
तिश्ना न बुझे ज़िंदगानी से
तुझसे मुझमें हलचल वो नहीं
जो सागर की तुग़्यानी से
तू क्यूँ थम नहीं जाती
उम्र कहे ये जवानी से
तू कैसे ख़ुश रहती है
समझ पूछे नादानी से
तूने अब तक क्या-क्या सीखा
मुश्किल पूछे आसानी से
इतना बल कैसे पड़ता है
बोसा पूछे पेशानी से
इक खिलौने की क्या क़ीमत है
तंगी पूछे मनमानी से
तू ही अखबारों में क्यूँ छपती है
सच पूछे ये कहानी से
चलो दफ़्तर की रौनक़ बढ़ाएँ
ज़िंदगी की क़ुर्बानी से
दिल-ए-फ़लक में टीस उठी है
टूटे तारे की निशानी से
वो हिज्र को उल्फ़त कहती थी
मैं मिला था इक दीवानी से
कोई आकर कह दे जाने को
मुझमें बैठी अंजानी से
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