Friday, March 23, 2018

ग़ज़ल - 60

हाथों की लकीरों में तेरा इम्कान लिख दिया
हमने अपनी क़िस्मत बदलने का फ़रमान लिख दिया

महफ़िल में इक दिन पढ़ रहा था उसकी बुराइयाँ
बेख़ुदी में हमने उसे जान लिख दिया

जो पूछा के बताएँ कुछ अपना भी तार्रुफ़
दर्द की बस्ती का सुलैमान लिख दिया

इक दिन लहू ने पूछा इतनी शराब किस लिए
थोड़ा ख़ून निकाल कर आराम लिख दिया

इक शब जो उसने चेहरे से काकुल हटाए अपने
सितारों ने आसमाँ पे चाँद लिख दिया

क्या क्या नीलाम होगा जब मुफ़्लिसी आवेगी
फेहरिस्त में सबसे ऊपर ईमान लिख दिया

इक दिन हिसाब करने बैठा था फ़रेबों का
दिल ने कलम उठायी और दीवान लिख दिया

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