Wednesday, December 27, 2017

ग़ज़ल - 48

अगरचे मुझे हासिल तेरे नक़्श-ए-पा भी नहीं
ये मेरे शौक की क़ज़ा भी नहीं

हयात दोनों को बर-अक्स लिए जाती है
और इसमें दोनों की रज़ा भी नहीं

मौत भी कम कोई ग़नीमत है
ज़िन्दगी कम कोई सज़ा भी नहीं

तुझसे मसाइल ख़त्म किये जा सकते हैं
अव्वल तो मुश्किल नहीं और मज़ा भी नहीं

1 comment:

  1. अगरचे = although
    नक़्श-ए-पा = footprints
    क़ज़ा = death
    हयात = life
    बर-अक्स = in opposition
    मसाइल = problems

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