Thursday, December 21, 2017

ग़ज़ल - 46

जितना तुझपर वक़्त बिताया करते हैं
उतना ज़्यादा ख़ुद को ज़ाया करते हैं

हम हाथों से जिनको खोते रहते हैं
हम ख़्वाबों में उनको पाया करते हैं

जाने दस्तक देकर कौन चला जाता है
हम कमरों से बाहर आया करते हैं

तुझको छूकर अंगड़ाई लेती है हवा
खुशबू खुशबू मौसम गाया करते हैं

जिस मौज़ू को पहले मिसरे में ढँकते हैं
मिसरा-ए-सानी में नुमाया करते हैं

कुछ लोग जहाँ पर अदब की बातें करते हैं
हम हाथों से चावल खाया करते हैं

जिसका दूध पी कर बचपन से बड़े होते हैं
कुछ लोग उस गाय का खून बहाया करते हैं

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