Tuesday, December 12, 2017

ग़ज़ल - 45

जुगनुओं को चमकने के लिए बस रात काफ़ी है
मैं तन्हा खुश रहता हूँ, ये बात काफ़ी है

ता-उम्र उसकी बातों का असर मेरे ज़ेहन में रहा
किसी को छू लेने के लिए एक मुलाक़ात काफ़ी है

दुनिया के हर ग़म से बचा कर रखती है
बस इक तेरे ग़म की सौग़ात काफ़ी है

मैं दम भर देख लेता हूँ तो गुल खिल जाते हैं
मेरे सीने में कशिश, दिल में जज़्बात काफ़ी हैं

मुफ़्लिस क्यूँ रोता है, भूखे पेट सोता है
जवाब नहीं चाहिए बस सवालात काफ़ी हैं

No comments:

Post a Comment