Tuesday, December 5, 2017

ग़ज़ल - 44

मेरे रंग-ओ-बू-ओ-लज़्ज़त का सबक तुम बनो
मेरी ज़िंदगी की चाय का अदरक तुम बनो

न लौंग, न इलाइची, न अजवाइन, न दालचीनी
मेरे ज़ौक़-ए-ज़िंदगी का फ़क़त हक़ तुम बनो

बस हम और तुम और कुछ पत्ते और शीरीं
मुझमे ऐसे घुल जाओ के कड़क तुम बनो

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