Saturday, December 23, 2017

ग़ज़ल - 47

तेरी कू में रूह बस्ती है
बड़ी दिलचस्प फ़ाक़ा-परस्ती है

तेरे जाने से चली जाती है
जान जानाँ इतनी सस्ती है

ज़िन्दान-ए-मोहब्बत के बाहर
आख़िर हमारी क्या हस्ती है

तेरे आगे बिल्कुल बेबस हैं
तेरे दीदों की ज़बरदस्ती है

वो तेरा मुश्क, वो प्याला-ए-नाफ़
कैसी शराब और कैसी मस्ती है

No comments:

Post a Comment