तेरी कू में रूह बस्ती है
बड़ी दिलचस्प फ़ाक़ा-परस्ती है
तेरे जाने से चली जाती है
जान जानाँ इतनी सस्ती है
ज़िन्दान-ए-मोहब्बत के बाहर
आख़िर हमारी क्या हस्ती है
तेरे आगे बिल्कुल बेबस हैं
तेरे दीदों की ज़बरदस्ती है
वो तेरा मुश्क, वो प्याला-ए-नाफ़
कैसी शराब और कैसी मस्ती है
बड़ी दिलचस्प फ़ाक़ा-परस्ती है
तेरे जाने से चली जाती है
जान जानाँ इतनी सस्ती है
ज़िन्दान-ए-मोहब्बत के बाहर
आख़िर हमारी क्या हस्ती है
तेरे आगे बिल्कुल बेबस हैं
तेरे दीदों की ज़बरदस्ती है
वो तेरा मुश्क, वो प्याला-ए-नाफ़
कैसी शराब और कैसी मस्ती है
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