Sunday, September 30, 2018

ग़ज़ल - 79

चमन के सभी गुल धानी के नहीं हैं
मेरे ख़यालात सभी मआनी के नहीं हैं

तुझको देख लेता हूँ तो फिर ये सोचता हूँ
मेरे मसलात सभी परेशानी के नहीं है

तूने देखे हैं बोहोत दर्द के मारे हुए लोग
तेरे तजुर्बात मेरी ज़िंदगानी के नहीं हैं

हमने देखा है इक मज़लूम की आँखों में लहू
जहाँ में अश्क़ सभी पानी के नहीं हैं

और वो हँसी ख़ुशी साथ रहने लगते हैं
ऐसे वाक़िए मेरी कहानी के नहीं हैं

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