Sunday, September 30, 2018

ग़ज़ल - 79

चमन के सभी गुल धानी के नहीं हैं
मेरे ख़यालात सभी मआनी के नहीं हैं

तुझको देख लेता हूँ तो फिर ये सोचता हूँ
मेरे मसलात सभी परेशानी के नहीं है

तूने देखे हैं बोहोत दर्द के मारे हुए लोग
तेरे तजुर्बात मेरी ज़िंदगानी के नहीं हैं

हमने देखा है इक मज़लूम की आँखों में लहू
जहाँ में अश्क़ सभी पानी के नहीं हैं

और वो हँसी ख़ुशी साथ रहने लगते हैं
ऐसे वाक़िए मेरी कहानी के नहीं हैं

Friday, September 21, 2018

अकेले शेर - 22

दिल ने फिर से कर दी इक अय्यारी है
शायद पूरी मरने की तय्यारी है

मुझको इश्क़ दोबारा हो चला है
मुझको एक जानलेवा बीमारी है

Thursday, September 20, 2018

अकेले शेर - 21

मेरी दास्तान-ए-ज़िन्दगी की बस यही तस्वीर है
मैं तेरा किरदार हूँ पर तू मेरी तहरीर है

इस दास्ताँ में चल रहीं हैं दो कहानियाँ बराबर
इक मेरी ताबीर है और इक तेरी तक़दीर है

Wednesday, September 12, 2018

अकेले शेर - 20

सिर्फ़ मुद्दे उठाना ही उनका इरादा है
सवाल की अहमियत जवाब से ज़्यादा है

इक तरफ़ वंश का स्थापत्य उनका सत्य है
इक तरफ़ देखिए तो राजा ख़ुद प्यादा है

Sunday, September 9, 2018

अकेले शेर - 19

है जो तेरे रुख़सार की पहरेदारी में एक तिल
जैसे किसी के हसीन असरार ज़ब्त किए हो एक दिल

चाँद सँवरता ख़ुद को देख कर सागर के आईने में
सागर की तफ़्सीर में सारे रूप चाँद के हैं शामिल

Monday, September 3, 2018

ग़ज़ल - 78

गोशे-गोशे में मचलती है
वो ख़ुशबू कहाँ सँभलती है

उसके साँसों की हरारत से
सीने की बर्फ़ पिघलती है

मेरे होंठों से लग कर वो
मेरे अंतस में फिसलती है

मैं उसके क़रीब आ जाता हूँ
जब दिन होता, शामें ढलती हैं

#चाय