Saturday, August 4, 2018

ग़ज़ल - 77

दुनिया की ज़ात से परे होकर
मिल रहे दो पंछी हरे होकर

ये दुनिया बट चुकी है अब ख़ानों में
सो वो मिलते हैं इक दूजे से डरे होकर

अभी इक पैग़ाम लाई है सबा
मिले कल रात दो पंछी मरे होकर

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