Emotional Hallucination
A tryst with... life.
Sunday, August 26, 2018
अकेले शेर - 18
बा-हताश आदम सा जन्नत के दर से लौटे हैं
हाँ हम अभी छुट्टी मना कर घर से लौटे हैं
Wednesday, August 15, 2018
अकेले शेर - 17
जहाँ अहल-ए-वतन तहज़ीब-ओ-रिवायत की तामील में फ़ाज़िल है
असल मायने में वो ही मुल्क़ आज़ादी का हासिल है
परतंत्र रहे, बलिदान दिया, अपने मौलिक अधिकार लिए
पर अपनी संस्कृति तक जाना ही आज़ादी की मंज़िल है
Friday, August 10, 2018
अकेले शेर - 16
तीरगी का अक्स और ख़ामोशी की सुनवाई
ज़िन्दगी के कहकशाँ में गूंजती है तन्हाई
बे-इंतिहाई भी है ख़ुदा का एक रंग
सो अपने वीराने में हमने पाई मसीहाई
Saturday, August 4, 2018
ग़ज़ल - 77
दुनिया की ज़ात से परे होकर
मिल रहे दो पंछी हरे होकर
ये दुनिया बट चुकी है अब ख़ानों में
सो वो मिलते हैं इक दूजे से डरे होकर
अभी इक पैग़ाम लाई है सबा
मिले कल रात दो पंछी मरे होकर
Wednesday, August 1, 2018
ग़ज़ल - 76
वो किस्सा अधूरा छूट गया था
इक लम्हा वक़्त से टूट गया था
वो फिर मुझे न आया मनाने
इक बार मैं उससे रूठ गया था
उसके शहर-ए-उल्फ़त का उजाला
मेरी बीनाई लूट गया था
उसकी ख़ुशी में आँसू ढलके
अमृत का इक घूँट गया था
मैं तो पहले ही मर चुका था
अख़बारों में झूठ गया था
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