Thursday, June 28, 2018

ग़ज़ल - 71

तेरे दीदा-ए-बेताब को इंतज़ार हो मेरा
ये हाल-ए-इश्क़-ए-बेकसी इक बार हो तेरा

मेरी तह-ए-तड़प का इल्म तुमको भी हो जाना
हम जैसों की ज़िंदगी से सरोकार हो तेरा

कभी तो यूँ हो रुत बदले, बरसात हो
दिल मेरा हो शाद और बेक़रार हो तेरा

कभी तो रख दे तू अपना रुख़्सार हाथों पे मेरे
ख़त्म बस तस्वीरों में करना दीदार हो तेरा

इक दिन तो क़रार कर लें हम-दोनों ज़िन्दगी का
इक दिन तो न तेरे लबों पे इन्कार हो तेरा

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तेरे दीदा-ए-बेताब को हो इंतज़ार मेरा
ये हाल-ए-इश्क़-ए-बेकसी हो इक बार तेरा

मेरी तह-ए-तड़प का इल्म तुमको भी हो जाना
हम जैसों की ज़िंदगी से हो सरोकार तेरा

कभी तो रुत बदलेगी बरसात होगी
दिल मेरा होगा शाद और बेक़रार तेरा

कभी तो रख देगी अपना रुख़्सार मेरे हाथों पर
ख़त्म होगा बस तस्वीरों में करना दीदार तेरा

इक दिन तो क़रार कर लेंगे हम-दोनों ज़िन्दगी का
बात पुरानी रह जाएगी वो हर बात पे करना इंकार तेरा

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