Thursday, June 28, 2018

अकेले शेर - 13

मेरे ज़िंदान-ए-जिस्म से ही होकर जाती तेरी खुशबू
मैं लम्हा लम्हा घटता हूँ तू क़तरा क़तरा बढ़ती है

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