Thursday, June 28, 2018

चाँदनी चमक-चमक

चाँदनी चमक-चमक
गुलबदन गमक-गमक
क्यारियाँ महक-महक
बहारें चहक-चहक
शोला सा दहक-दहक
मन मेरा लहक-लहक

इश्क़ ये नया-नया
हो निगाह से अयाँ

जब ये दिन ढ़ला-ढ़ला
राहबर चला-चला
और देर ठहर-ठहर
होने दे प्रथम पहर

बात कोई इक सुना
राग कोई गुनगुना

बात जिसमे बात हो
जिसमें दिन न रात हो
बात हो समय परे
दिल में जो जगह घरे

बात इक उड़ान की
दूर के मक़ान की
जो जग़ह से परे
सिर्फ प्रेम से भरे
बात में सुगंध हो
रोम रोम में भरे

आए कहीं इक सदा
दिल कहीं दुखा-दुखा
हो विरह की घड़ी
मोतियों की झड़ी

बात जिसमें चाँद हो
भेड़िया की माँद हो
बात जिसमे इक परी
बोलती सदा खरी

पर अब न कोई बात हो
अब महज़ जज़्बात हों
बात अब फ़िज़ा करे
दास्ताँ कोई गढ़े

और हम विलीन हों
इक दूजे के अधीन हों
फिर सूर्य की पहली किरण
हम लौट जाएँ अपने बन

अकेले शेर - 13

मेरे ज़िंदान-ए-जिस्म से ही होकर जाती तेरी खुशबू
मैं लम्हा लम्हा घटता हूँ तू क़तरा क़तरा बढ़ती है

ग़ज़ल - 71

तेरे दीदा-ए-बेताब को इंतज़ार हो मेरा
ये हाल-ए-इश्क़-ए-बेकसी इक बार हो तेरा

मेरी तह-ए-तड़प का इल्म तुमको भी हो जाना
हम जैसों की ज़िंदगी से सरोकार हो तेरा

कभी तो यूँ हो रुत बदले, बरसात हो
दिल मेरा हो शाद और बेक़रार हो तेरा

कभी तो रख दे तू अपना रुख़्सार हाथों पे मेरे
ख़त्म बस तस्वीरों में करना दीदार हो तेरा

इक दिन तो क़रार कर लें हम-दोनों ज़िन्दगी का
इक दिन तो न तेरे लबों पे इन्कार हो तेरा

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तेरे दीदा-ए-बेताब को हो इंतज़ार मेरा
ये हाल-ए-इश्क़-ए-बेकसी हो इक बार तेरा

मेरी तह-ए-तड़प का इल्म तुमको भी हो जाना
हम जैसों की ज़िंदगी से हो सरोकार तेरा

कभी तो रुत बदलेगी बरसात होगी
दिल मेरा होगा शाद और बेक़रार तेरा

कभी तो रख देगी अपना रुख़्सार मेरे हाथों पर
ख़त्म होगा बस तस्वीरों में करना दीदार तेरा

इक दिन तो क़रार कर लेंगे हम-दोनों ज़िन्दगी का
बात पुरानी रह जाएगी वो हर बात पे करना इंकार तेरा

Tuesday, June 26, 2018

ग़ज़ल - 70

दिन ने सूरज की खिड़की खोली
रंगों ने फिर खेली होली

मैंने दिन पर पर्दा डाला
रात भी मेरे संग में हो ली

सुबह सबसे पहले उठकर
हमने अपनी नब्ज़ टटोली

हाथ पसारो और उड़ जाओ
इक दिन चिड़िया मुझसे बोली

हम-तुम जैसे दरिया प्यासा
दुख-सुख जैसे दामन-चोली

Monday, June 18, 2018

अकेले शेर - 12

खुशबू खुशबू बहता है
पुष्प इत्र को सहता है

मैं तो बांस का कासा हूँ
दरिया क्यूँ मुझमें रहता है

Friday, June 1, 2018

ग़ज़ल - 69

सभी से हँसकर, बोलकर मिलिए
पर नकली लोगों से तोलकर मिलिए

बड़े बुज़ुर्गों से सतर्क रहिए
बच्चों से दिल खोलकर मिलिए

अपनी सोहबत समझकर चुनिए
अपनी जेबें टटोलकर मिलिए