Thursday, February 22, 2018

ग़ज़ल - 57

पर्वत ने पुर्वाई चुरा ली
सूरज ने परछाई चुरा ली

मैं तुमसे नाराज़ बोहोत हूँ
तुमने मेरी तन्हाई चुरा ली

ये आईने का तर्जुमा है या
उम्र ने मेरी रानाई चुरा ली

ज़िन्दगी तुझको बनाया हमने
तूने मेरी बनवाई चुरा ली

अहद ने उसकी सब यादों को
जितनी थी बचाई, चुरा ली

कारख़ानों ने किसी का बचपन
चूड़ियों ने बीनाई चुरा ली

नज़्मों ने मज़मून चुराये
ग़ज़लों ने रुबाई चुरा ली

शहरों ने घर तक़सीम कर दिए
बच्चों ने शनासाई चुरा ली

किताबों ने तजस्सुस चुराया
तर्बियत ने दानाई चुरा ली

कौमें सदा हम-क़दम रहीं हैं
सियासत ने हम-नवाई चुरा ली

Tuesday, February 20, 2018

ग़ज़ल - 56

ये जो आदमी मंज़िल से पहले रुक जाता है
गोया सहर से पहले दीपक बुझ जाता है

हौसले जब इरादों की शमशीर उठा लेते हैं
शिकस्त ख़ुद ज़फर के आगे झुक जाता है

संजीदगी से न लो दुनिया-ए-फ़ानी को
समय का खेला है, चुक जाता है

Friday, February 16, 2018

ग़ज़ल - 55

मेरे अंदर की तीरगी देखो
रात बिस्तर में पड़ी देखो

सुबह आफ़ताब आने वाला है
रात निकलने को खड़ी देखो

सहर-ए-फ़ुर्क़त है फ़ुर्क़त-ए-शब
कैसे जुड़ रही कड़ी देखो

फिर उसके आने की हसरत में
बस घड़ी-घड़ी घड़ी देखो

मेरा गुरूर ही है मिल्कियत मेरी
मेरे आँसुओं की लड़ी देखो

मलबा-ए-इश्क़ से बनी इमारत तुम
बस खड़ी-खड़ी खड़ी देखो

हैरत तो ये तेरे ज़ियाँ की कहानी
मेरे हादसे से बड़ी देखो

Friday, February 9, 2018

ग़ज़ल - 54

बे-दिली की यूँ इंतिहा करता हूँ
ख़ुशबू निचोड़ के हवा करता हूँ

पहलू-ए-दर्द से शहर भर में
मर्ज़-ए-ख़ुशी की दवा करता हूँ

तन्हाई-पसंदी का आलम तो ये है
अपने साये से भी मैं गिला करता हूँ

दिल, आँखें, दर्द, आँसू, कोई नहीं सुनता मेरी
मैं अपने बदन का बादशाह हुआ करता हूँ

मुझसे वाबस्ता हैं मेरे काशाना-ए-दर-ओ-दीवार
ये मुझको और मैं इनको रात भर तका करता हूँ

शाम आता हूँ घर तो शक करती है उदासी मेरी
मैं अक्सर ख़ुशी के साथ मुँह काला किया करता हूँ

Wednesday, February 7, 2018

अकेले शेर - 8

लोग सफ़र में रखते हैं कुछ रहस्यमयी किताबें
हम अपनी ज़िन्दगी की कहानियाँ लिए चलते हैं