Tuesday, May 16, 2017

ग़ज़ल - 19

ये हुक्म है मेरा, कोई अर्ज़ी नही
तू जुदा हो मुझसे ये मेरी मर्ज़ी नही

तू चुप है तो ये आलम है दिल का
के बिजली गिरी है मगर गरजी नही

तुझे रोक लूँ के इश्क़-ए-बे-कराँ है तुझसे
बात मतलब की तेरे है मेरी ख़ुदगर्ज़ी नही

बादशाहत और फ़क़ीरी में तेरे होने का अंतर
और चाक गिरेबाँ सी सकूँ मैं कोई दर्ज़ी नही

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