Tuesday, May 9, 2017

ग़ज़ल - 18

ये क्या है जो सवार है सर पर
किसी दिलकशी का ख़ुमार है सर पर
दो रोज़ जो हयात लायी है तेरे दर पर
तो मर के जाना है इस सदी को जी कर
उसका चेहरा जो मयस्सर हो आखों के भीतर
तो इबादत में पलकें झुक न जायें क्यूँकर
चलो हिजरत कर लो के घड़ी आयी है बर्बर
सितमगर ने कहा है अब वो नहीं उस जगह पर

No comments:

Post a Comment