Wednesday, July 6, 2011

अकेले शेर - 1

वो मुझसे बिस्मिल है तो क्योंकर है,
नदी भी पर्बतों से होकर है,
इस आशनाई का अब मैं क्या करूँ,
हमने अज़ीज़ों से खायी बोहत  ठोकर है |

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