Wednesday, July 6, 2011

इक ऐसी भी शाम हो...

शाम हो, जाम हो, सुबू भी हो,
कुछ बिछड़े यारों का समूह भी हो |

कुछ बीती बातों के किस्से चलें,
कुछ पुराने गीतों की बू भी हो |

कुछ पेचीदा मसलों के हल भी निकलें,
कुछ रूमानियत भरी गुफ्तगू भी हो |

कुछ खिलखिलाहट की लड़ियाँ जो ख़त्म न हों,
कुछ अश्कों की बूँदें कभी शुरू भी हों |

कुछ बे-तकल्लुफ अंदाज़ में बातें करें,
फिर बीच में कभी शायरी-ए-उर्दू भी हो |

कुछ मीठी यादों से मन महके,
बागों में हरसिंगार की खुशबू भी हो |

उस शाम को संजो के रखें हम,
जहाँ ये भी हो, वो भी हो, और तू भी हो |

2 comments:

  1. The very first line is from a famous ghazal, sung by Manna Dey. The rest is by me.

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  2. hmmm......nice work, keep writing.

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