Friday, July 29, 2011

अकेले शेर - 2

मेरी मजबूरियों को मेरा पैमाना न समझ
उजड़ना ही बस्तियों का फ़साना न समझ
गर देख सके तो झाँक मेरी आँखों के तले
मेरे आज से मेरे कल का ज़माना न समझ

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