Sunday, August 20, 2017

ग़ज़ल - 23

लाद के आलिम-पैराहन
मुरझा जाता है बचपन

एहसासों पे गुमाँ-पोशी
जब छा जाता है सयानापन

आशाओं की पुर्वाई में
सिमट सा जाता है बचपन

अहद-ए-हिसाब बा-फ़ुज़ूल
उम्र बता देता दर्पण

तितली गिनता था बचपन
रिश्ते गिनता है सयानापन

क़ैद-ए-अना में सयानापन
पतंग उड़ाता था बचपन

जब किसी की याद में रोते हो
तो कहाँ जाता है सयानापन

जिन गलियों को छोड़ आए
अब लौट के जाना पागलपन

इक बच्चे को हसाने में
आ जाता छण को बचपन

दीन-ओ-मोहब्बत का एक उसूल
कर देना ख़ुद को अर्पण 

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