गोशे-गोशे में तेरे ये आज किसका फ़साना है
तू पहलु में मेरे है और बातों में ज़माना है
ये आँखें जो तेरी मिल नहीं रहीं मेरी आँखों से
मेरी नज़रों में तू है तेरी नज़रों में अफ़्साना है
आज तू एक ग़ज़ल जो पढ़ी जा चुकी है
आज तू एक शम्अ' जिसमें जल चुका परवाना है
ये बस्ती जल रही है आज दिल की और मैं चुप हूँ
ये चिंगारी किसी अपने के हाथों का लगाना है
वो दोनों मुस्कुराकर रु-ब-रु होते हैं उफ़ुक़ पर
चाँद और सूरज में बस तकल्लुफ़ी याराना है
के इंसाँ कुछ नहीं अपने ही कल का एक पुलिंदा है
के जीना बस तजुर्बों का मुकम्मल शायराना है
तू पहलु में मेरे है और बातों में ज़माना है
ये आँखें जो तेरी मिल नहीं रहीं मेरी आँखों से
मेरी नज़रों में तू है तेरी नज़रों में अफ़्साना है
आज तू एक ग़ज़ल जो पढ़ी जा चुकी है
आज तू एक शम्अ' जिसमें जल चुका परवाना है
ये बस्ती जल रही है आज दिल की और मैं चुप हूँ
ये चिंगारी किसी अपने के हाथों का लगाना है
वो दोनों मुस्कुराकर रु-ब-रु होते हैं उफ़ुक़ पर
चाँद और सूरज में बस तकल्लुफ़ी याराना है
के इंसाँ कुछ नहीं अपने ही कल का एक पुलिंदा है
के जीना बस तजुर्बों का मुकम्मल शायराना है
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