ऐ रफ़ू-ए-दिल, हरकत तो दे
आँसू ही बहा, नफ़रत तो दे
बुत-परस्ती में खुद पत्थर बन
अपनी इबादत को मक़सद तो दे
झाड़ खुद को अना की गर्द से
दिल में निगहबानों को शिरकत तो दे
वो जिनके दम पे तू जिंदा है यहाँ
एहसान न मान, पर इज़्ज़त तो दे
जिसके जवाब के इंतज़ार में बैठा है
कमबख़्त उसके नाम एक ख़त तो दे
कितनी आसाँ हो गयी है दुनिया जानाँ
जीने की कोई जद्दोजहद तो दे
अपनी मसर्रत बिछा दूँ तेरे दामन पर
बद-बख़्त मुझे थोड़ी सी मोहब्बत तो दे
जुर्म-ए-मोहब्बत की पेशी में तूने
अपनी कहानी सुनाई, अब हक़ीक़त तो दे
ऐ संग-ए-दिल तेरी दुनिया में
कैसे जीना है मश्वरत तो दे
बोहोत बे-स्वाद हैं पकवान यहाँ माँ
अपने हाथों की रोटी की लज़्ज़त तो दे
आँसू ही बहा, नफ़रत तो दे
बुत-परस्ती में खुद पत्थर बन
अपनी इबादत को मक़सद तो दे
झाड़ खुद को अना की गर्द से
दिल में निगहबानों को शिरकत तो दे
वो जिनके दम पे तू जिंदा है यहाँ
एहसान न मान, पर इज़्ज़त तो दे
जिसके जवाब के इंतज़ार में बैठा है
कमबख़्त उसके नाम एक ख़त तो दे
कितनी आसाँ हो गयी है दुनिया जानाँ
जीने की कोई जद्दोजहद तो दे
अपनी मसर्रत बिछा दूँ तेरे दामन पर
बद-बख़्त मुझे थोड़ी सी मोहब्बत तो दे
जुर्म-ए-मोहब्बत की पेशी में तूने
अपनी कहानी सुनाई, अब हक़ीक़त तो दे
ऐ संग-ए-दिल तेरी दुनिया में
कैसे जीना है मश्वरत तो दे
बोहोत बे-स्वाद हैं पकवान यहाँ माँ
अपने हाथों की रोटी की लज़्ज़त तो दे
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