नूर बरपे गली गली
जब वो महवश चली चली
जब वो महवश चली चली
रखे उसने फूलों पे कदम
दिल की ज़मीन पे गर्द उड़ी
दिल की ज़मीन पे गर्द उड़ी
उसके रुख़सार की नरमी जैसे
उगते सूरज पे कली खिली
उगते सूरज पे कली खिली
उसका तबस्सुम, एक तसादुम
उसकी हया पे बर्क़ गिरी
उसकी हया पे बर्क़ गिरी
उसकी हसी और उसकी बोली
कान में जैसे कूक पड़ी
कान में जैसे कूक पड़ी
अफ़्लाक सी आँखें, चाल मयूरी
शफ़क़ में लिपटी हूर-परी
शफ़क़ में लिपटी हूर-परी
उसकी कमर है जैसे झेलम
ज़ुल्फ़ों में फिरदौस मिली
ज़ुल्फ़ों में फिरदौस मिली
मुझपे निगाहें एक इनायत
और है उसकी दरिया-दिली
और है उसकी दरिया-दिली
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